मंत्रशास्त्र में वेदोक्त मृत्युंजय मंत्र : -
मंत्रशास्त्र में वेदोक्त मृत्युंजय मंत्र : -
मंत्रशास्त्र में वेदोक्त मृत्युंजय मंत्र

☀☀☀☀☀मंत्रशास्त्रमें वेदोक्त मृत्युंजय मंत्र ☀☀☀☀☀
भगवान शंकर की उपासना अनेक रूपों में होती है। अकाल मृत्यु के भय-नाश तथा पूर्णायु की प्राप्ति के उद्देश्य से शिवजी के मृत्युंजय रूप की आराधना की जाती है। मृत्युंजय अपने भक्त की अपमृत्यु और दुर्गति से रक्षा करने में पूर्ण समर्थ हैं। भगवान मृत्युंजय के ध्यान एवं उनके मंत्र के जप से निíमत सुरक्षा-चक्र को भेदने की क्षमता यमराज में भी नहीं है। अकाल मृत्यु पर विजय पाने के लिए मानव सदा से प्रयत्नशील रहा है। मनुष्य पूर्णायु का सुख तभी भोग सकता है, जब वह अकाल मृत्यु का ग्रास न बने।
मंत्रशास्त्र में वेदोक्त
˜यम्बकं यजामहेसुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्उर्वारुकमिवबन्धनान्मृत्योर्मुक्षीयमामृतात्
को ही मृत्युंजय मंत्र माना गया है। तंत्रविद्याके ग्रंथों में मृत्युंजय मंत्र के अनेक स्वरूपों तथा प्रयोगों का वर्णन मिलता है। आयुर्वेद में भी मृत्युंजय-योग मिलते हैं जिनके सेवन से प्राणी दीर्घायु होता है। ज्योतिषशास्त्र में जन्मकुण्डली में मारकेशकी दशा के समय मृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान निíदष्ट है।
समाप्त
ॐ नागेश्वराय नम:
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