19.बेर के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

 बेर के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज



परिचय (Introduction)

बेर का पेड़ हर जगह आसानी से पाया जाता है। बेर के पेड़ में कांटें होते हैं। बेर सुपारी के बराबर होती है। बेर की अनेक जातियां हैं। जैसे-जंगली बेर, झरबेर, पेवंदी बेर आदि। इसके पेड़ में बहुत अच्छी लाख लगती हैं। इसकी लकड़ियां हल, गाड़ी आदि बनाने के काम में आती हैं। इसके सूखे पत्ते जानवरों को खिलाने के लिए फायदेमंद होता है। इसकी एक छोटी जाति को महाराष्ट्र में बोरटी कहते हैं।

गुण (Property)

 बेर का गुदा मधुर और बलप्रद होता है तथा खांसी, दमा, प्यास, गैस, उल्टी, जलन और पित्त को खत्म करता है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

बेर एक सामान्य फल है। इसको ज्यादा खाने से खांसी होती है। कच्चे बेर कभी नहीं खाने चाहिए।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

बालतोड़ :

बेर के पत्तों को पीसकर लगाने से बालतोड़ का दर्द कम होता है।

स्वर भंग (गले का बैठ जाना) :

  • बेर की जड़ को मुंह में रखना चाहिए, अथवा बेर के पत्तों को सेंककर सेंधानमक के साथ खाना चाहिए इससे लाभ मिलता है।
  • बेर के पेड़ की छाल का टुकड़ा मुंह में रखकर उसका रस चूसने से दबी हुई आवाज 2-3 दिन में ही खुल जाती है।

आंखों से पानी का बहना :

बेर के बीज को पानी में घिसकर दिन में 2 बार 1-2 महीने तक लगाने से आंखो से पानी बहना बंद हो जाता है।

शरीर के किसी भी भाग में जलन होने पर :

बेर के पत्तों को पीसकर लगाने से शरीर की किसी भी भाग की जलन शांत हो जाती है।

पेशाब करने में परेशानी:

बेर की कोंपल (मुलायम पत्तियां) और जीरे को पीसकर रोगी को देना चाहिए। इससे पेशाब खुलकर आता है।

कंठ सर्प पर (गले के चारों और फुंसियों का घेरा) :

जंगली बेर की छाल को घिसकर दो बार पिलाना चाहिए।

खूनी दस्त :

  • बेर की छाल को दूध में पीसकर शहद के साथ पीना चाहिए, इससे रक्तातिसार (खूनी दस्त) का रोग ठीक हो जाता है।
  • बेर की जड़ और तेल को बराबर मात्रा में लेकर गाय या बकरी के दूध के साथ पिलाना चाहिए, इससे रक्तातिसार (खूनी दस्त) में आराम आता है।
  • बेर को खाने से रक्तातिसार (खूनी दस्त) रोग और आंतों के घाव ठीक हो जाते हैं।

छाती के दर्द या टी.बी में :

20 ग्राम बेर या पीपल की छाल को पानी में पीसकर उसमें चौगुने कद्दू के रस को मिलाकर रोगी को पिलाना चाहिए इससे छाती और टी.बी के रोग में लाभ होता है।

बिच्छू के जहर पर :

  • बेर के पत्ते और उदुम्बर के पत्तों को बारीक पीसकर दंश पर बांधने से बहुत शीघ्र लाभ होता है।
  • बेर के बीज का गर्भ और ढाक के बीज को बराबर मात्रा में मिलाकर आक के दूध में 6 घण्टे तक खरलकर लेप बना लें। इस लेप को घिसकर बिच्छू के कटे स्थान पर लेप करने से बिच्छू का जहर उतरता है।

उल्टी :

  • बेर की गुठलियों के अंदर का भाग, बड़ के अंकुर तथा मधुयिष्ट का काढ़ा, शहद और शक्कर को मिलाकर पीना चाहिए, इससे उल्टी तुरंत ही बंद हो जाती है।
  • 1 ग्राम बेर की जड़ की छाल के चूर्ण को चावल के पानी के साथ दिन में दो बार रोगी को देने से उल्टी के रोग में आराम मिलता है।

दस्त :

  • बेर के पेड़ के पत्तों का चूर्ण मट्ठे के साथ रोगी को देने से दस्त खत्म हो जाते हैं।
  • बेर के पेड़ की छाल का काढ़ा बनाकर रख लें, फिर इसी बने हुए काढ़े को 20 से लेकर 40 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से दस्तों में लाभ मिलता है।
  • कच्चे बेर को खाने से भी दस्त में आराम मिलता है।
  • बेर के पत्तों को पीसकर आधा चम्मच और आम की गुठली की गिरी थोड़ी-सी गिरी को मिलाकर सेवन करने से दस्तों में लाभ मिलता है।

श्वेतप्रदर और रक्तप्रदर :

  • बेर के पेड़ की छाल का चूर्ण 5 ग्राम सुबह-शाम गुड़ के साथ सेवन करने से श्वेतप्रदर और रक्तप्रदर मिटता है। चनाबेर की छाल का चूर्ण गुड़ या शहद के साथ खाने से श्वेतप्रदर और रक्तप्रदर में लाभ होता है।
  • 1-3 ग्राम छाल का चूर्ण गुड़ के साथ दिन में दो बार लेने से श्वेतप्रदर और रक्तप्रदर में लाभ मिलता है।

रक्त प्रदर :

  • बेर का चूर्ण गुड़ में मिलाकर सेवन करने से रक्तप्रदर में आराम मिलता है।
  • 10 ग्राम बेर के पत्ते, 5 दाने कालीमिर्च और 20 ग्राम मिश्री को पीसकर 100 मिलीलीटर पानी में मिलाकर पीने से रक्तप्रदर में लाभ होता है।

पेशाब का रुकना :

बेर के पेड़ के मुलायम पत्ते व जीरा मिलाकर पानी में पीसकर उनका भांग जैसा शर्बत बनाकर कपड़े से छानकर खाने से गर्मी के कारण रुका हुआ पेशाब साफ आता है।

चेचक :

  • चेचक में बेर के पत्तों का रस भैंस के दूध के साथ रोगी को देने से रोग का वेग कम होता है। बेर के 6 ग्राम पत्तों के चूर्ण को 2 ग्राम गुड़ के साथ मिलाकर रोगी को खिलाने से भी 2-3 दिन में चेचक खत्म होने लगता है।
  • बेर के पेड़ की छाल और उसके पत्तों का काढ़ा बनाकर छाछ में मिलाकर पशुओं को पिलाने से उनका चेचक का रोग दूर होता है।

मुंह के रोग में :

बेर के पत्तों का काढ़ा बनाकर दिन में 2-3 बार कुल्ले करने से मुंह के छाले दूर हो जाते हैं। कपूरयुक्त किसी औषधि का सेवन करने से मुंह के छाले, दांत के मसूढ़े ढीले पड़ गये हों और मुंह से लार टपकती हो तो बेर के पेड़ की छाल या पत्तों का काढ़ा बनाकर कुल्ले करना लाभकारी होता है।

फोड़े :

बेर के पत्तों को पीसकर गर्म करके उसकी पट्टी बांधने से और बार-बार उसको बदलते रहने से फोड़े जल्दी पक कर फूट जाते हैं।

पुरानी खांसी :

लगभग 12 से 24 ग्राम बेर की छाल को पीसकर घी के साथ भूने तथा उसमें सेंधानमक मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करें। इससे लाभ होता है।

आंख आना :

बेर की गुठली की फांट को अच्छी तरह से छानकर आंखों मे डालने से नेत्राभिष्यन्द, आंखों का दर्द आदि ठीक हो जाते हैं।

शीतला (मसूरिका) ज्वर :

बेर का चूर्ण गुड़ के साथ रोगी को खिलाने से वात, पित्त तथा हर प्रकार की माता तुरंत पककर ठीक हो जाती हैं।


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