अद्भुत विष्णु स्तुति
अद्भुत विष्णु स्तुति
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==================================अद्भुत विष्णु स्तुति
==================================धर्मग्रंथ परब्रह्म स्वरूप भगवान विष्णु की अनन्त, विलक्षण व असीम महिमा का गान करते हैं। जहां विष्णु का विराट स्वरूप कर्म व धर्म की राह बताता है तो उनके सारे चमत्कारी अवतार नैतिक मूल्यों और आचरण की सीख द्वारा जीवन को सही तरीके से जीना सिखाते हैं।
यही कारण है कि विष्णु उपासना की विशेष तिथियों पर भगवान विष्णु का किसी भी रूप में स्मरण मात्र ही मनोरथ सिद्धि करने वाला माना गया है। देवउठनी एकादशी की ऐसी ही शुभ तिथि में शास्त्रों में बताई एक विष्णु मंत्र स्तुति बहुत ही चमत्कारी मानी गई है। जो धूप, दीप लगाकर बोलने मात्र से ही मनचाही मुरादें पूरी करती है। यह विष्णु पंञ्जर स्त्रोत के नाम से भी प्रसिद्ध है।
मान्यता है कि इसके प्रभाव से ही जगतजननी कात्त्यायनी ने भी रक्तबीज, महिषासुर जेैसे राक्षसों का अंत किया। जानते हैं यह अद्भुत विष्णु स्तुति-
प्रवक्ष्याम्यधुना ह्येतद्वैष्णवं पञ्जरं शुभम्।
नमो नमस्ते गोविन्द चक्रं गृह्य सुदर्शनम्।।
प्राच्यां रक्षस्व मां विष्णो त्वामहं शरणं गत:।
गदां कौमोदकीं गृह्य पद्मनाभ नमोस्तु ते।।
याम्यां रक्षस्व मां विष्णो त्वामहं शरणं गत:।
हलमादाय सौनन्दं नमस्ते पुरुषोत्तम।।
प्रतीच्यां रक्ष मां विष्णो त्वामहं शरणं गत:।
मुसलं शातनं गृह्य पुण्डरीकाक्ष रक्ष माम्।।
उत्तरस्यां जगन्ननाथ भवन्तं शरणं गत:।
खड्गमादाय चर्माथ अस्त्रशस्त्रादिकं हरे।।
नमस्ते रक्ष रक्षोघ्र ऐशान्यां शरणं गत:।
पाञ्चजन्यं महाशङ्खमनुघोष्यं च पङ्कजम्।
प्रगृह्य रक्ष मां विष्णो आग्रेय्यां यज्ञशूकर।
चन्द्रसूर्य समागृह्य खड्गं चान्द्रमसं तथा।।
नैर्ऋत्यां मां च रक्षस्व दिव्यमूर्ते नृकेसरिन्।
वैजयन्ती सम्प्रगृह्य श्रीवत्सं कण्ठभूषणम्।।
वायव्यां रक्ष मां देव हयग्रीव नमोस्तुते।
वैनतेयं समरुह्य त्वन्तरिक्षे जनार्दन।।
मां रक्षस्वाजित सद नमस्तेस्त्वपराजित।
विशालाक्षं समारुह्य रक्ष मां तवं रसातले।।
अकूपार नमस्तुभ्यं महामीन नमोस्तु ते।
करशीर्षाद्यङ्गलीषु सत्य त्वं बाहुपञ्जरम्।।
कृत्वा रक्षस्व मां विष्णो नमस्ते पुरुषोत्तम।
एतदुक्तं शङ्काराय वैष्णवं पञ्जरं महत्।।
पुरा रक्षार्थमीशान्यां: कात्यायन्या वृषध्वज।
नाशयामास सा येन चामरं महिषासुरम्।।
दानव रक्तबीजं च अन्यांश्च सुरकण्टकान्।
एतज्जपन्नरो भक्तया शत्रून् विजयते सदा।।
समाप्त
ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:
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