घर वास्तु शास्त्र

 

1.मुख्यद्वार का वास्तु

वास्तुअनुसार घर का


मुख्यद्वार


घर का एंट्रेस यानी की घर का मुख्य द्वार परिवार की समृद्धि का सूचक माना जाता है. इसीलिए हमेशा घर के मुख्य द्वार को वास्तु के अनुसार बनाना चाहिए. घर में सुख-शांति, समृद्धि, धन-वैभव व ख़ुशहाली के लिए मुख्यद्वार बनवाते समय वास्तु के कुछ नियमों का पालन करने से घर को नकारात्मक ऊर्जा से बचाया जा सकता है.

घर का मुख्य प्रवेश द्वार अन्य दरवाज़ों से ऊंचा और बड़ा होना चाहिए इसका आकार हमेशा घर के भीतर बने अन्य दरवाज़ों की तुलना में बड़ा होना चाहिए.


वास्तु अनुसार पूर्व अथवा उत्तर दिशा में मुख्यद्वार बनवाना बहुत ही शुभ होता है.


नैऋत्य और वायव्य कोण में घर का मुख्य द्वार नहीं बनवाना चाहिए.


यदि घर का मुख्यद्वार घर के अन्य दरवाज़ों से छोटा है और उसे बदलना संभव न हो, तो उसके आसपास एक ऐसी फोकस लाइट लगाएं, जिसका प्रकाश मुख्यद्वार और वहां से प्रवेश करने वालों के चेहरों पर पड़े.


मुख्य प्रवेश द्वार अत्यंत सुशोभित होना चाहिए. इससे प्रतिष्ठा बढ़ती है मुख्य द्वार पर तोरण बांधने से देवी-देवता सारे कार्य निर्विघ्न रूप से सम्पन्न कराकर मंगल प्रदान करते हैं.


घर के दरवाज़े जहां तक हो अंदर की ओर ही खुलने चाहिए. बाहर की ओर खुलने वाले दरवाजे कार्य में बाधा व धीरे-धीरे धनहानि कराते है.


दरवाजे स्वतः खुलने या बन्द होने वाले नहीं होना चाहिए इसके अलावा खोलते या बंद करते समय उनसे किसी भी प्रकार की आवाज़ नहीं होनी चाहिए.


वास्तुअनुसार घर का मुख्यद्वार हमेशा दो पल्ले का होना शुभ माना जाता है.


वास्तुअनुसार घर के प्रवेशद्वार के आसपास किसी तरह का कोई अवरोध होना शुभ नहीं माना जाता है जैसे- बिजली के खंभे, कोई कांटेदार पौधा आदि.


मुख्यद्वार के सामने डस्टबिन या कचरे का डिब्बा न रखें हमेशा प्रवेशद्वार के आसपास सफ़ाई का पूरा ध्यान रखें.


मुख्यद्वार के पास तुलसी का पौधा रखने से वास्तु दोष दूर होते हैं और नकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश नहीं कर पाती.


वास्तु अनुसार घर के मुख्य दरवाजे के सामने उपर जाने के लिए सीढ़ियां नहीं होनी चाहिए।


घर का मुख्य द्वार एक की बजाय दो पल्ले वाला अधिक शुभ माना जाता है


मुख्य द्वार त्रिकोणाकार, गोलाकार, वर्गाकार या बहुभुज की आकृति वाला नहीं बनाना चाहिए।


वास्तुअनुसार घर का मुख्य द्वार लकड़ी का बना हो तो बेहद शुभ माना जाता है। दरवाजा बनवाते समय ध्यान रखे कि उसमें धातु का प्रयोग कम से कम हो इससे घर में हमेशा सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है साथ ही मुख्य द्वार का आकार आयताकार रखना चाहिए.

2.बेडरूम का वास्तु 



वास्तुअनुसार घर का


बेडरूम


बैडरूम हमारे घर का अहम् हिस्सा होता है क्योकि यहाँ हम आराम करते है और अपने निजी जीवन के कुछ अनुभव शेयर करते है. पति पत्नी के सुखी दांपत्य जीवन के लिए शयन कक्ष के वास्तु का सही होना बहुत जरूरी होता है. चलिए जानते है शयन कक्ष से जुड़े कुछ वास्तु टिप्स. 


वास्तुअनुसार बेडरूम का आकार चौकोर या आयताकार होना चाहिए।


बेडरूम में सोते समय सिर पूर्व या दक्षिण दिशा में रखा जाना चाहिए।


एक्वैरियम या असली पौधों को बेडरूम में नहीं रखें।


वास्तु अनुसार बैडरूम में पलंग के नीचे किसी भी तरह का सामान नहीं रखना चाहिए.


अलमारियाँ और वार्डरोब बेडरूम की पश्चिम या दक्षिण दिशा में होना चाहिए।


शयन कक्ष में दरवाजे पूर्व, पश्चिम या उत्तर की ओर होना चाहिए लेकिन दक्षिण-पश्चिम की ओर में नहीं होना चाहिए।


शयन कक्ष में बड़ी खिड़की को उत्तर या पूर्व में होना चाहिए जबकि छोटी खिड़कियों को पश्चिम की ओर होना चाहिए।


शयन कक्ष की दीवारों के लिए आदर्श रंग गुलाबी, नीला और हरा हैं। शयन कक्ष की दीवारों के लिए चमकीले रंग का प्रयोग करने से बचें।


टेलीविजन सेट बेडरूम में नहीं रखा जाना चाहिए।


शयन कक्ष में ड्रेसिंग टेबल या दर्पण को पूर्व या उत्तर की ओर रखा जाना चाहिए।


युद्ध, क्रूरता, उदासी, जंगली जानवरों की तस्वीरें या किसी भी एकल पक्षी की तस्वीर को शयन कक्ष में प्रदर्शित नहीं करें।


अगर शयन कक्ष से संलग्न एक बाथरूम है, तो यह सुनिश्चित करें कि यह सीधे बिस्तर के सामने नहीं होना चाहिए तथा यह भी सुनिश्चित कर लें कि बाथरूम का दरवाजा सभी समय पर बंद रहे।


पैसे और आभूषण रखने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक लॉकर शयन कक्ष के उत्तर या उत्तर-पूर्व दिशा में होना चाहिए और इसका मुख उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए।


बैडरूम में खिड़की का होना शुभ होता है साथ ही बैडरूम में मुख्य द्वार की ओर पैर करके नहीं सोना चाहिए.


वास्तु शास्त्र अनुसार बैडरूम में शीशा लगाना शुभ नहीं माना जाता है इससे पति पत्नी को स्वास्थ्य

 सम्बन्धी परेशानियां हो सकती है. 

3.ड्राइंग रूम का वास्तु



वास्तुअनुसार घर का


ड्राइंग रूम


आपका ड्रॉइंग रूम आपके घर का वो सबसे महत्वपूर्ण कमरा होता है जहाँ पर आपके परिवार के सदस्य सबसे ज्‍यादा वक्त बि‍ताते हैं। ड्रॉइंग रूम से आपके व्यक्तित्व की झलक देखने को मिलती है. माना जाता है की घर के ड्राइंग रूम को अगर वास्तु के अनुसार रखा जाय तो पूरे परिवार को पोसिटिव एनर्जी मिलती है. जानिये ड्राइंग रूम से जुड़े कुछ वास्तु टिप्स.


ड्राइंग रूम में भारी वस्तुएं- जैसे फर्नीचर, शो-केस आदि दक्षिण-पश्चिम कोने यानी नैऋत्य कोण में रखनी चाहिए।


ड्राइंग रूम या लिविंग रूम में दरवाजा पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए वास्तुअनुसार ये दिशाए ये बहुत शुभ मानी गयी है जिनसे घर में धन, उत्तम स्वास्थ्य आता है.


ड्राइंग रूम में खिड़कियों की दिशा पूर्व या उत्तर दिशा में होनी चाहिए वास्तु अनुसार ये दिशाएं बहुत लाभकारी होती हैं।


वास्तुशास्त्र में रंगो का विशेष महत्व बताया गया है इसीलिए ड्राइंग रूम की दीवारों को क्रीम, सफेद,  हल्का भूरा, पीला या नीला रंग शुभ माना गया है। इसकी दीवारों के लिए हल्के आसमानी या हरे रंग भी उत्तम माने गए हैं।


यदि ड्राइंग रूम वायव्य कोण यानी पश्चिम-उत्तर कोने पर बना है, तो हल्का स्लेटी, सफेद या क्रीम रंग का प्रयोग किया जाना चाहिए।


ड्राइंग रूम के दरवाजे और खिड़कियों के लिए हरे, नीले, सुनहरे, मरून रंग के पर्दे शुभ माने जाते है.


ड्राइंग रूम में अक्वेरियम या कृत्रिम पानी का फव्वारा उत्तर-पूर्व कोना यानी ईशान कोण में बढ़िया माना गया है।


टी.वी. ड्राइंग रूम में अग्नि कोण यानी दक्षिण-पश्चिम कोने में रखा जा सकता है।


वास्तुअनुसार ड्राइंग रूम में मेहमानो के बैठने की व्यवस्था दक्षिण-पश्चिम या उत्तर-पश्चिम कोने में होनी चाहिए और घर के मुखिया को दक्षिण-पश्चिमी कोने में बैठना चाहिए जिससे उसका चेहरा उत्तर या पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए जो की शुभ होता है.


ड्राइंग रूम या बैठक कमरे के पूर्वोत्तर कोने को हमेशा खाली और साफ सुथरा रखना चाहिए. वास्तु अनुसार यह ऐसा क्षेत्र है जो अधिकतम 

सौभाग्य को आकर्षित करता है।

4.बाथरूम का वास्तु 



वास्तुअनुसार घर का


बाथरूम


आज कल घरों में स्नानगृह और शौचालय एक साथ होना आम बात है लेकिन वास्तुशास्त्र के नियम के अनुसार इससे घर में वास्तुदोष उत्पन्न होता है। इस सन्दर्भ में वास्तु नियम निम्न अनुसार है.


भवन में शौचालय के अन्दर सीट उत्तर-दक्षिण दिशा में देखते हुए लगानी चाहिए |


बाथरूम (स्नानागार) में वाश बेसिन (हाथ धोने का स्थान) को ईशान कोण या पूर्व दिशा में लगाना चाहिए


बाथरूम (स्नानागार) में गीजर आदि को अग्निकोण में लगाना चाहिए |


मकान में या बाथरूम में शीशा या दर्पण हमेशा पूर्व या ऊतर दिशा की दीवार में ही लगाना चाहिए |


मकान में रसोई एवं स्नानागार या टॉयलेट एक साथ नहीं होने चाहिए या उनकी दीवार एक नहीं होनी चाहिए|


इलेक्ट्रिक उपकरण जैसे- गीजर, वाशिंग मशीन बाथरूम के दक्षिण पूर्व दिशा में रखा जा सकता है।


शौचालय का दरवाजा हमेशा बन्द रखना चाहिए एंव शौचालय को कभी भी पूर्व या उत्तर की दीवार से सटा हुआ नहीं होना चाहिए। मकान में शौचालय यदि गलत दिशा में बना है तो घर के अधिकतर सदस्यों को पेट खराब रहेगा एंव प्रगतिशीलता में बाधा आयेगी।


स्नानघर में नीले रंग की बाल्टी रखना बेहद लाभकारी है। इससे घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है। बाथरूम में बाल्टी को कभी खाली नहीं छोड़ना चाहिए इसे हमेशा भरकर रखना शुभ माना जाता है।


स्नानघर के दरवाजे के ठीक सामने दर्पण नहीं लगाना चाहिए ये अशुभ प्रभाव को बढ़ाता है।


अगर आपके बेडरूम में स्नानघर है तो 

उसका दरवाजा हमेशा बंद रखें। 

सीढ़ियों का वास्तु 



वास्तुअनुसार घर की


सीड़ियाँ


वास्तुशास्त्र में घर की सीढ़ियों का काफी महत्व बताया गया है कहा जाता है की वास्तुअनुसार घर की सीढ़ियां यदि सही दिशा में बानी हो तो इससे घर में सुख समृद्धि आती है


भारतीय वास्तु विज्ञान के अनुसार घर की सीढ़ियों के लिए नैऋत्य यानी दक्षिण पश्चिम दिशा उत्तम होती है। इस दिशा में सीढ़ी होने पर घर प्रगति ओर अग्रसर रहता है।


वास्तुशास्त्र के अनुसार उत्तर पूर्व यानी ईशान कोण में सीढ़ियों का निर्माण नहीं करना चाहिए। इससे आर्थिक नुकसान, स्वास्थ्य की हानि, नौकरी एवं व्यवसाय में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस दिशा में सीढ़ी का होना अवनति का प्रतीक माना गया है।


दक्षिण पूर्व में सीढ़ियों का होना भी वास्तु के अनुसार नुकसानदेय होता है। इससे बच्चों के स्वास्थ्य उतार-चढ़ाव बना रहता है।


अगर आप मकान में घुमावदार सीढ़ियाँ बनाने की प्लानिंग कर रहे हैं, तो आपके लिए यह जान लेना आवश्यक है कि सीढ़ियों का घुमाव सदैव पूर्व से दक्षिण, दक्षिण से पश्चिम, पश्चिम से उत्तर और उत्तर से पूर्व की ओर रखें। चढ़ते समय सीढ़ियाँ हमेशा बाएँ से दाईं ओर मुड़नी चाहिए। 


सीढ़ियों की संख्या हमेशा विषम होनी चाहिए।


जो लोग खुद ग्राउंड फ्लोर पर रहते हैं और किरायेदारों को ऊपरी मंजिल पर रखते हैं उन्हें मुख्य द्वार के सामने सीढ़ियों का निर्माण नहीं करना चाहिए ऐसा करना आपके लिए मुस्किले खड़ी कर सकता है.


सीढ़ियों के आरंभ और अंत में द्वार बनवाएं।


सीढ़ी के नीचे जूते-चप्पल एवं घर का बेकार सामान नहीं रखें।


वास्तु शास्त्र के अनुसार सीढ़ियों के नीचे रसोईघर या फिर बाथरूम नहीं बना होना चाहिए। यह आपके घर की आर्थिक स्थिति को खराब कर सकता है.


सीढ़ियों के नीचे फिश-एक्वेरियम या फिर कोई भी ऐसी वस्तु 

जो जल से संबंधित हो न रखें। 

बालकनी का वास्तु 



वास्तुअनुसार घर की


बालकनी


वास्तु शास्त्र अनुसार घर की बालकनी एक ऐसा स्थान है जहाँ पर आप अपने फुर्सत के पल बिताते है. कहा जाता है की यदि आपके घर की बालकनी वास्तु के नियमों के अनुसार नहीं बनी हो तो जीवन में परेशानियां आ सकती है वास्तु अनुसार बालजनि से सम्बंधित कुछ वास्तु टिप्स.


यदि आपका भवन पूर्वमुखी है, तो बालकनी पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए। ऐसे भवन में बालकनी पश्चिम या दक्षिण दिशा में कदापि न बनायें।


पश्चिममुखी भवन में बालकनी को उत्तर या पश्चिम की दिशा में बनाना शुभ माना जाता है।


जिन लोगों का मकान उत्तरमुखी है, उसमें बालकनी को पूर्व या उत्तर दिशा में बनाना हितकर रहता है। यदि आपका भूखण्ड दक्षिणमुखी है तो, बालकनी को पूर्व या दक्षिण दिशा में बनाना लाभप्रद साबित होता है।


बालकनी का चयन हमेशा भवन के मुख के आधार पर ही करना उचित रहता है। परन्तु या ध्यान रखना चाहिए कि प्रातःकालीन की सकारात्मक उर्जा एंव प्रकाश का प्रवेश घर में निर्बाध रूप से होता रहें।


वास्तुशात्र अनुसार बालकनी में वॉश बेसिन नहीं लगाना चाहिए। बालकनी से घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है इसलिए बालकनी में इस तरह की चीजें भूलकर भी नहीं लगानी चाहिए.


घर की बालकनी में किसी भी तरह का फालतू व् अनावश्यक सामान नहीं रखना चाहिए.  इससे घर के सदस्यों में तनाव की स्थति बानी रहती है.


वास्तु के अनुसार बालकनी का आकार भी काफी महत्व रखता है कभी भी बालकनी में कर्व नहीं होना चाहिए।


वास्तुअनुसार पूर्वमुखी भवन होने पर बालकनी पूर्व या उत्तर दिशा में होनी चाहिए।


वही यदि मकान उत्तरमुखी है तो उसमें बालकनी को पूर्व या उत्तर दिशा में बनाना हितकर रहता है।


दक्षिणमुखी मकान होने पर बालकनी को पूर्व या दक्षिण दिशा में बनाना विशेष रू

प से लाभप्रद साबित होता है।


रसोई का वास्तु



वास्तुअनुसार घर की


रसोई


हर व्यक्ति लाइफ में सफलता पाने की कामना करता है ऊंचाईयां छूने के लिए हमारे शरीर का स्वस्थ्य होना जरूरी है और ये तभी संभव है जब शरीर को पौष्टिक भोजन मिलेगा। वास्तु अनुसार रसोई घर को जितनी अधिक सकारात्मक उर्जा मिलेगी उतना ही वहां रहने वाले लोगो का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। आइये जानते है रसाई घर से जुड़े कुछ आसान वास्तु टिप्स.


रसोईघर भवन या फ्लैट के दक्षिण-पूर्व कोने में बनाएं उतर-पूर्व में रसोईघर मानसिक परेशानियां बढाता है। इसके दक्षिण-पश्चिम में होने से जीवन कठिन हो सकता है।


रसोईघर शयनकक्ष, पूजाघर या शौचालय के पास नहीं होना चाहिए.


रसोई का दरवाजा यदि उतर या उतर-पश्चिम में हो तो उतम रहता है। दरवाजा चूल्हे के सामने नहीं हो। इससे (ऊर्जा) स्वतंत्र रूप से अंदर प्रवेश नहीं कर पाती है। चूल्हा रखने का स्लैब पूर्व दिशा की ओर हो, ताकि खाना पकाने वाले का मुंह पूर्व दिशा की ओर रहे।


गैस चूल्हा ऎसी जगह रखें जिससे बाहर से आने-जाने वाले पर नजर रखी जा सके। चूल्हा पूर्व की दीवार के पास रखें, ताकि हवा व रोशनी पर्याप्त मात्रा में मिल सके।


माइक्रोवेव ओवन में लगातार बिजली का प्रवाह होता रहता है। इसलिए इसे दक्षिण पूर्व में रखें। इसको दक्षिण-पश्चिम में भी रख सकते हैं। यह क्षेत्र शक्ति और संबंधों का भी प्रतीक है। संबंधों में सुधार की दृष्टि से यह हितकर है।


रसोईघर का फ्रिज पश्चिमी क्षेत्र में रखें। यहां पर यह सम्पन्नता व संबंध मजबूत बनाने में सहायक रहता है। शांति व व्यावहारिकता में भी वृद्धि होगी।


रसोईघर में पानी तथा चूल्हा आवश्यक तत्व हैं। जहां आग का स्थान दक्षिण-पूर्व है, वहीं पानी का स्थान उतर-पूर्व है। पानी का उतम स्थान उतर दिशा ही है, जो जल तत्व को दर्शाती है। आग व पानी को अलग-अलग रखना आवश्यक है। इसे एक लाइन में नहीं रखें। यदि ऎसा संभव न हो, तो बीच में दो फीट की दीवार लगा दें।


रसोईघर की प्रदूषित वायु और धुएं को बाहर निकालने के लिए एग्जॉस्ट पंखा लगाते हैं। इसे पूर्व, उतर या पश्चिम दिशा में लगवाएं।


रसोई घर में भारी बर्तन जैसे- सिलबट्टा, मिक्सी, आदि वस्तुएं दक्षिणी की दीवार की ओर रखना शुभ होता है.


रसोईघर के दक्षिण-पश्चिम भाग में गेहूं, आटा, चावल, अनाज आदि रखने 

से बरकत में वृद्धि होती है.

मंदिर का वास्तु 



वास्तुअनुसार घर का


मंदिर


घर का मंदिर वो स्थान है जहां हम भगवान की पूजा किया करते हैं। मंदिर हमेशा शांतिपूर्ण जगह पर होना चाहिए. माना जाता है की यदि मंदिर को वास्तु शास्त्र के अनुसार बनाया और रखा जाय तो यह घर और वहां रहने वाले लोगो के लिए सुख-शांति और समृद्धि के द्वार खोल देता है. चलिए जानते है घर के मंदिर से जुड़े कुछ जरूरी वास्तु टिप्स.


वास्तु विज्ञान के अनुसार पूजन, भजन, कीर्तन, अध्ययन-अध्यापन सदैव ईशान कोण में होना चाहिए।


वास्तुअनुसार पूजा करते समय व्यक्ति का मुख पूर्व में होना चाहिए। ईश्वर की मूर्ति का मुख पश्चिम व दक्षिण की ओर होना चाहिए।


ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इंद्र, सूर्य, कार्तिकेय का मुख पूर्व या पश्चिम की ओर होना चाहिए। गणेश, कुबेर, दुर्गा, भैरव का मुख नैऋत्य कोण की ओर होना चाहिए।


ज्ञान प्राप्ति के लिए पूजागृह में उत्तर-दिशा में बैठकर उत्तर की ओर मुख करके पूजा करनी चाहिए और धन प्राप्ति के लिए पूर्व दिशा में पूर्व की ओर मुख करके पूजा करना उत्तम है।


वास्तु अनुसार घर के मंदिर में दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, रखना शुभ नहीं माना गया है.


पूजा घर का रंग स़फेद या हल्का क्रीम रंग का होना शुब्ता प्रदान करने वाला होता है.


शयनकक्ष में कभी भी पूजा स्थल नहीं बनाना चाहिए. अगर जगह की कमी की वजह से मंदिर शयनकक्ष में है तो मंदिर के चारों ओर पर्दे लगा दें.


वास्तुअनुसार पूजाघर के लिए सबसे बढ़िया स्थान ईशान कोण माना गया है. इस दिशा में मंदिर होने से घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है.


पूजा करते समय आपका मुख पूर्व की तरफ़ होना शुभ माना जाता है क्योकि इससे घर में धन, समृद्धि का वास होता है.


वास्तुअनुसार सीढ़ियों के नीचे कभी भी मंदिर नहीं बनाना चाहिए. इसके अलावा घर के मंदिर के ऊपर  गुंबद बनाने

 से नकारात्मक ऊर्जा आती है.

पानी का वास्तु 



वास्तुअनुसार घर में


पानी का स्थान


वास्तु अनुसार घर में पानी सही स्थान और सही दिशा में होना घर के सदस्यों के स्वास्थ्य पर अनुकूल असर डालता है और सुख-समृद्धि में वृद्धि करता है. आइये जानते है घर में पानी की सही दिशा और स्थान से जुड़े कुछ वास्तु टिप्स. 


वास्तुअनुसार पानी से भरे बर्तन रसोईघर के उत्तर-पूर्व या पूर्व में भरकर रखने चाहिए.


वास्तु में ईशान कोण को पानी का स्थान माना गया है इसीलिए घर में पानी का भण्डारण या फिर भूमिगत टैंक अथवा बोरिंग पूर्व, उत्तर या पूर्वोत्तर दिशा में होना चाहिए.


उत्तर दिशा में रखा पानी का टेंक या पीने का पानी घर में शांति और सुख समृद्धि को बढ़ाता है।


वास्तुशास्त्र अनुसार पश्चिम दिशा में पानी का स्थान शुभ माना गया है। इससे घर में संपत्ति अर्थात धनवृद्धि होती है.


घर के दक्षिण पूर्व दिशा में पानी का टैंक लगाना शुभ नहीं माना जाता है.


दक्षिण दिशा में भी पानी की टंकी या भूमिगत टेंक नहीं बनाना चाहिए. इससे परिवार कलेश और धन हानि होती है।


घर के दक्षिण-पश्चिम दिशा यानी की नैऋत्य कोण भी पानी की टंकी रखने के लिए अशुभ माना गया है। इस स्थान में पानी होने से बीमारियां और कर्जा की समस्या हो सकती है.


टैंक ऐसी जगह बनाया जाए जहाँ पर से उसमें सुबह की सूर्य की किरण प्रवेश करे।


पानी का टैंक उत्तर-पश्चिम दिशा में नहीं बनाना चाहिए। यदि टैंक इस दिशा में बनाया जाता है तो टैंक का आकार छोटा रखना चाहिए तथा इसकी दूरी वास्तुशास्त्र के अनुसार उत्तर-पश्चिम दिशा के कार्नर से कम से कम दो फीट होनी चाहिए।


पानी के टैंक पर प्लास्टिक के ढक्कन न लगाएँ। यदि आप प्लास्टिक के ढक्कन लगा  रहे हैं तो वह नीले या काले रंग के होने चाहिए क्योंकि ये सूर्य की ऊष्मा के अच्छे अवशोषक होते हैं।


यदि संभव हो तो पीने के पानी व अन्य कार्यों में उपयोग में लाए जाने वाले पानी के

 लिए अलग-अलग टैंक होना चाहिए।

स्टडी रूम का वास्तु



वास्तुअनुसार घर में


स्टडी रूम


वास्तुशास्त्र अनुसार यदि स्टडी रूम सही दिशा में न हो, तो बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो सकती है. वास्तु दोष के कारण सफलता नहीं मिल पाती है आइये जानते है वास्तु नियमों के अनुसार बच्चों के पढ़ने के कमरे से जुड़े कुछ वास्तु टिप्स.


भारतीय वास्तुशास्त्र के अनुसार अध्ययन कक्ष हमेशा ईशान कोण में ही पूजागृह के साथ पूर्व दिशा में होना चाहिए।


प्रकाश की ऊर्जा ही घर में सकारात्मकता लाती है, लिहाजा पूरब दिशा में स्टडी रूम काफी प्रभावी माना जाता है।


भारतीय वास्तुशास्त्र के अनुसार बुध, गुरू, शुक्र एवं चंद्र चार ग्रहों के प्रभाव वाली पश्चिम-मध्य दिशा में अध्ययन कक्ष का निर्माण करने से अति लाभदायक सिद्ध होती है।


अध्ययन कक्ष में टेबिल पूर्व-उत्तर ईशान या पष्चिम में रहना चाहिए।


अध्ययन कक्ष दक्षिण आग्नेय व नैऋत्य या उत्तर-वायव्य में नहीं होना चाहिए।


खिड़की या रोषनदान पूर्व-उत्तर या पश्चिम में होना अति उत्तम माना गया है। दक्षिण में यथा संभव न ही रखें।


अध्ययन कक्ष में रंग संयोजन सफेद, बादामी, पिंक, आसमानी या हल्का फिरोजी रंग दीवारों पर या टेबल-फर्नीचर पर अच्छा है। काला, गहरा नीला रंग कक्ष में नहीं करना चाहिए।


अध्ययन कक्ष का प्रवेश द्वार पूर्व-उत्तर, मध्य या पष्चिम में रहना चाहिए। दक्षिण आग्नेय व नैऋत्य या उत्तर-वायव्य में नहीं होना चाहिए।


अध्ययन कक्ष में पुस्तके रखने की अलमारी या रैक उत्तर दिशा की दीवार से लगी होना चाहिए।


स्टडी रूम में पानी रखने की जगह, मंदिर, एवं घड़ी उत्तर या पूर्व दिशा में उपयुक्त होती है।


अध्ययन कक्ष की ढाल पूर्व या उत्तर दिशा में रखें तथा अनुपयोगी चीजों को कक्ष में न रखें।


स्टडी टेबिल गोलाकार या अंडाकार की जगह आयताकार हो।टेबिल के टाप का रंग सफेद दूधिया हो।  कम्प्यूटर टेबिल पूर्व मध्य या उत्तर मध्य में रखें इसे ईशान कोण में कदापि न रखे।अध्ययन कक्ष के मंदिर में सुबह-शाम चंद

न की अगरबत्तियां लगाना न भूलें।

तिजोरी का वास्तु 



वास्तुअनुसार घर में


तिजोरी का स्थान


अधिकतर घरों में तिजोरी या धन रखने का निश्चित स्थान तो होता ही है. वास्तु अनुसार माना जाता है की यदि तिजोरी को सही समय पर किसी सही दिशा में रखा जाय तोघर में धन धान्य की कमी नहीं होती है तो चलिए जानते है तिजोरी या लॉकर से जुड़े कुछ जरूरी वास्तु टिप्स.


प्राय: आभूषण और रुपए आदि आलमीरा के लॉकर में रखा जाता है। भारतीय वास्तुशास्त्र के अनुसार लॉकर दक्षिण दिशा में रखना चाहिए ताकि लॉकर का दरवाजा उत्तर दिशा में खुलना चाहिए। क्योंकि माना जाता है कि धनदेव कुबेर उत्तर दिशा में निवास करते हैं।


वास्तु शास्त्र के अनुसार जोड़ लगाया हुआ लॉकर या अलमारी घर में रखने पर कलह होता है।


लॉकर या अलमारी आगे की तरफ झुकते हों तो गृहस्वामी घर से बाहर ही रहता है। अलमारी व लॉकर का मुख सदैव पूर्व या उत्तर की ओर खुले।


विधिवत पूजन के बाद ही तिजोरी में वस्तुएँ रखनी चाहिए व हर शुभ अवसर पर इष्ट देव के साथ लॉकर का भी पूजन करें ताकि घर में बरकत बनी रहे।


जिस तिजोरी या अलमारी में कैश व ज्वेलरी रखते हैं उसे कमरे में दक्षिण की दीवार से लगाकर रखें। इससे अलमारी का मुंह उत्तर की ओर खुलेगा। इस दिशा के स्वामी देवताओं के खजांची कुबेर हैं। उत्तर दिशा में अलमारी का मुंह खुलने से धन और ज्वेलरी में बढ़ोतरी होती है।


वास्तु विज्ञान में पूर्व दिशा को उन्नति और उर्जा की दिशा कहा गया है। इस दिशा के स्वामी इन्द्र हैं, जो देवताओं के राजा हैं। इसलिए धन-संपत्ति में वृद्धि की आशा रखने वाले को तिजोरी और धन रखने वाली अलमारी को पश्चिमी दीवार से लगाकर रखना चाहिए। इससे तिजोरी और अलमारी का मुंह पूर्व दिशा की ओर खुलेगा और देवराज की कृपा दृष्टि आप पर बनी रहेगी।


अगर आपकी तिजोरी का मुंह दक्षिण दिशा की ओर खुलता है तो जल्दी से जल्दी तिजोरी का स्थान बदल दें। दक्षिण दिशा का स्वामी यम है। इस दिशा में तिजोरी का मुंह खुलने से रोग एवं अन्य दूसरी चीजों में धन का व्यय बढ़ जाता है। इस दिशा में धन रखने से धन की हानि होती है।


वास्तु शास्त्र के अनुसार संपत्ति में वृद्धि के लिए जरूरी है कि आपको अपनी मेहनत के अनुसार अच्छी आमदनी हो और आपकी कमाई का कुछ हिस्सा बचे। लेकिन अगर आप पश्चिम दिशा में तिजोरी या धन रखते हैं तो ऐसा होना कठिन होता है। वास्तु विज्ञान के अनुसार इस दिशा का स्वामी वरूण को माना जाता है। इसके कारण इस दिशा में धन रखने से धन पाने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है और धन पानी की तरह खर्च होता है। इसलिए आ

र्थिक तंगी बनी रहती है।



Comments

Popular posts from this blog

ગાયત્રી શતક પાઠ અને ગાયત્રી ચાલીસા

ભક્તિ ચેનલ ઓલ નામ

Anand No Garbo With Gujarati Lyrics - આનંદ નો ગરબો