आरती हिन्दी भाषा
गणेश जी की आरती
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती पिता महा देवा ।।
एक दन्त दयावंत चार भुजा धारी
माथे सिन्दूर सोहे मूस की सवारी ।।
अन्धन को आँख देत कोढ़िन को काया
बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया ।।
हार चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा
लड्डूअन का भोग लगे संत करे सेवा ।।
दीनन की लाज रखो शम्भू पुत्र वारी
मनोरथ को पूरा करो जाय बलिहारी ।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती पिता महा देवा ।।
दुर्गा माँ की आरती
ॐ सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते ।।
जय आंबे गौरी , मैया जय आंबे गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत , हरी ब्रह्मा शिवरी ।।
जय अम्बे गौरी
मांग सिन्दूर विराजत , टीको मृगमद को ।
उज्जवल से दोउ नैना , चन्द्रबदन नीको ।।
जय अम्बे गौरी
कनक सामान कलेवर , रक्ताम्बर राजै ।
रक्त पुष्प गलमाला , कण्ठन पर साजै ।।
जय अम्बे गौरी
केहरि वाहन राजत , खड़ग खप्परधारी ।
सुर नर मुनिजन सेवक , तिनके दुखहारी ।।
जय अम्बे गौरी
कानन कुण्डल शोभित , नासाग्रे मोती ।
कोटिक चन्द्र दिवाकर , राजत सम ज्योति ।।
जय अम्बे गौरी
शुम्भ निशुम्भ विडारे , महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना , निशदिन मदमाती ।।
जय अम्बे गौरी
चण्ड मुण्ड संघारे , शोणित बीज हरे ।
मधुकैटभ दोउ मारे , सुर भयहीन करे ।।
जय अम्बे गौरी
ब्रह्माणी रूद्राणी तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी , तुम शिव पटरानी ।।
जय अम्बे गौरी
चौसठ योगिनी गावत , नृत्य करत भैरूं ।
बाजत ताल मृदंगा , अरु बाजत डमरू ।।
जय अम्बे गौरी
तुम हो जग की माता , तुम ही हो भर्ता ।
भक्तन की दुःख हर्ता , सुख सम्पत्ति करता ।।
जय अम्बे गौरी
भुज चार अति शोभित , खड़ग खाप्परधारी ।
मनवांछित फल पावत , सेवत नर नारी ।।
जय अम्बे गौरी
कंचन थाल विराजत , अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत , कोटि रत्न ज्योति ।।
जय अम्बे गौरी
श्री आंबे जी की आरती , जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानन्द स्वामी , सुख संपत्ति पावै ।।
जय अम्बे गौरी
श्री विष्णू जी की आरती
ॐ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनो के संकट , दास जनो के संकट क्षण में दूर करे ।।
ॐ जय जगदीश हरे
जो ध्यावे फल पावे , दुख बिनसे मन का , स्वामी दुख बिनसे मन का ।
सुख सम्पति घर आवे , सुख सम्पति घर आवे , कष्ट मिटे मन का ।।
ॐ जय जगदीश हरे
मात पिता तुम मेरे , शरण गहूं मैं किसकी , स्वामी शरण गहूं मैं किसकी ।
तुम बिन और न दूजा , तुम बिन और न दूजा , आस करूँ मैं किसकी ।।
ॐ जय जगदीश हरे
तुम पूरण परमात्मा , तुम अंतर्यामी , स्वामी तुम अन्तरयामी ।
पारब्रह्म परमेश्वर , पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी ।।
ॐ जय जगदीश हरे
तुम करुणा के सागर , तुम पालनकर्ता , स्वामी तुम पालनकर्ता ।
मैं मूरक खल कामी, मैं सेवक तुम स्वामी , कृपा करो भर्ता ।।
ॐ जय जगदीश हरे
तुम हो एक अगोचर , सबके प्राणपति , स्वामी सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूं दयामय , किस विधि मिलूं दयामय , तुमको मैं कुमति ।।
ॐ जय जगदीश हरे
दीनबंधु दुखहर्ता , ठाकुर तुम मेरे , स्वामी ठाकुर तुम मेरे ।
अपने हाथ उठाओ , अपने शरण लगाओ , द्वार पड़ा तेरे ।।
ॐ जय जगदीश हरे
विषय विकार मिटाओ , पाप हरो देवा , स्वामी पाप हरो देवा ।
श्रद्धा भक्ती बढ़ाओ , श्रद्धा भक्ती बढ़ाओ , संतान की सेवा ।।
ॐ जय जगदीश हरे
ॐ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जानो के संकट , दास जानो के संकट क्षण में दूर करे ।।
ॐ जय जगदीश हरे
ॐ सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते ।।
जय आंबे गौरी , मैया जय आंबे गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत , हरी ब्रह्मा शिवरी ।।
जय अम्बे गौरी
मांग सिन्दूर विराजत , टीको मृगमद को ।
उज्जवल से दोउ नैना , चन्द्रबदन नीको ।।
जय अम्बे गौरी
कनक सामान कलेवर , रक्ताम्बर राजै ।
रक्त पुष्प गलमाला , कण्ठन पर साजै ।।
जय अम्बे गौरी
केहरि वाहन राजत , खड़ग खप्परधारी ।
सुर नर मुनिजन सेवक , तिनके दुखहारी ।।
जय अम्बे गौरी
कानन कुण्डल शोभित , नासाग्रे मोती ।
कोटिक चन्द्र दिवाकर , राजत सम ज्योति ।।
जय अम्बे गौरी
शुम्भ निशुम्भ विडारे , महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना , निशदिन मदमाती ।।
जय अम्बे गौरी
चण्ड मुण्ड संघारे , शोणित बीज हरे ।
मधुकैटभ दोउ मारे , सुर भयहीन करे ।।
जय अम्बे गौरी
ब्रह्माणी रूद्राणी तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी , तुम शिव पटरानी ।।
जय अम्बे गौरी
चौसठ योगिनी गावत , नृत्य करत भैरूं ।
बाजत ताल मृदंगा , अरु बाजत डमरू ।।
जय अम्बे गौरी
तुम हो जग की माता , तुम ही हो भर्ता ।
भक्तन की दुःख हर्ता , सुख सम्पत्ति करता ।।
जय अम्बे गौरी
भुज चार अति शोभित , खड़ग खाप्परधारी ।
मनवांछित फल पावत , सेवत नर नारी ।।
जय अम्बे गौरी
कंचन थाल विराजत , अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत , कोटि रत्न ज्योति ।।
जय अम्बे गौरी
श्री आंबे जी की आरती , जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानन्द स्वामी , सुख संपत्ति पावै ।।
जय अम्बे गौरी
श्री विष्णू जी की आरती
ॐ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनो के संकट , दास जनो के संकट क्षण में दूर करे ।।
ॐ जय जगदीश हरे
जो ध्यावे फल पावे , दुख बिनसे मन का , स्वामी दुख बिनसे मन का ।
सुख सम्पति घर आवे , सुख सम्पति घर आवे , कष्ट मिटे मन का ।।
ॐ जय जगदीश हरे
मात पिता तुम मेरे , शरण गहूं मैं किसकी , स्वामी शरण गहूं मैं किसकी ।
तुम बिन और न दूजा , तुम बिन और न दूजा , आस करूँ मैं किसकी ।।
ॐ जय जगदीश हरे
तुम पूरण परमात्मा , तुम अंतर्यामी , स्वामी तुम अन्तरयामी ।
पारब्रह्म परमेश्वर , पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी ।।
ॐ जय जगदीश हरे
तुम करुणा के सागर , तुम पालनकर्ता , स्वामी तुम पालनकर्ता ।
मैं मूरक खल कामी, मैं सेवक तुम स्वामी , कृपा करो भर्ता ।।
ॐ जय जगदीश हरे
तुम हो एक अगोचर , सबके प्राणपति , स्वामी सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूं दयामय , किस विधि मिलूं दयामय , तुमको मैं कुमति ।।
ॐ जय जगदीश हरे
दीनबंधु दुखहर्ता , ठाकुर तुम मेरे , स्वामी ठाकुर तुम मेरे ।
अपने हाथ उठाओ , अपने शरण लगाओ , द्वार पड़ा तेरे ।।
ॐ जय जगदीश हरे
विषय विकार मिटाओ , पाप हरो देवा , स्वामी पाप हरो देवा ।
श्रद्धा भक्ती बढ़ाओ , श्रद्धा भक्ती बढ़ाओ , संतान की सेवा ।।
ॐ जय जगदीश हरे
ॐ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जानो के संकट , दास जानो के संकट क्षण में दूर करे ।।
ॐ जय जगदीश हरे
श्री शिव जी की आरती
ॐ जय शिव ओंकारा , स्वामी जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धादी धारा ।
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसासन गरुडासन वृषवाहन साहें ।
दो भुज चार चतुर्भुज दश भुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहे ।
अक्षरमाला वनमाला रुण्डमाला धारी ।
चन्दन मृगमद सोहे भोले शशिधारी ।
श्वेताम्बर पीताम्बर बाधम्बार अंगे ।
सनकादिक ब्रह्मादिक प्रेतादिक संगे ।
कर के बीच कमण्डल चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जग कर्ता जग हर्ता जग पालन कर्ता ।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका ।
त्रिगुण स्वामीजी की आरती जो कोई गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावे ।
ॐ जय शिव ओंकारा , स्वामी जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धादी धारा ।
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसासन गरुडासन वृषवाहन साहें ।
दो भुज चार चतुर्भुज दश भुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहे ।
अक्षरमाला वनमाला रुण्डमाला धारी ।
चन्दन मृगमद सोहे भोले शशिधारी ।
श्वेताम्बर पीताम्बर बाधम्बार अंगे ।
सनकादिक ब्रह्मादिक प्रेतादिक संगे ।
कर के बीच कमण्डल चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जग कर्ता जग हर्ता जग पालन कर्ता ।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका ।
त्रिगुण स्वामीजी की आरती जो कोई गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावे ।
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