मंत्र का महत्व
मंत्र क्या है
किसी देवी-देवता की साधना के लिए मंत्र का जाप किया जाता है। मंत्र में इतनी शक्ति होती है कि इससे भूत-पिशाच को भी साधा जा सकता है। मंत्र साधना भौतिक बाधाओं का आध्यात्मिक विचार है।
- अगर आपके जीवन में काई समस्या या बाधा है तो उस मुसीबत को मंत्र जाप से भी हल किया जा सकता है। मंत्र का जाप करने से मन बुरे विचारों से दूर रहता है।
- मन और मस्तिष्क में नए और सकारात्मक विचार बने रहते हैं। सात्विक रूप से निश्चित समय और निश्चित स्थान पर बैठकर प्रतिदिन मंद्ध का जाप करते हैं तो साधक के मन में आत्मविश्वास बढ़ता है।
मंत्र जाप क्या है
ज्योतिष के जानकारों की मानें तो हर देवी-देवता की आराधना के लिए एक विशेष माला तय है, जिसके प्रयोग से देवता जल्दी प्रसन्न होते हैं।
- सही माला से मंत्रों का जाप करने से मंत्र सिद्ध होते हैं।
- ईश्वर की आराधना में मंत्रों के जाप का विशेष महत्व है।
- देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए मंत्रों के जाप का विधान है।
मंत्र के फायदे
जब आप मंत्रो पर मनन करते हैं, तो आपकी ऊर्जा बढ़ती है। ऐसा कहा गया है- मन्त्रों के अर्थ ज़रूर होते हैं, लेकिन इनका अर्थ केवल हिमशिला के कोने जैसा है। अर्थ इतना ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है, जितना इन मन्त्रों की तरंगों को महसूस करना है। मंत्र को लगातार जपते रहने से मंत्र सिद्ध होता है। यदि आपका ध्यान इधर, उधर भटक रहा है तो फिर मंत्र को सिद्ध होने में भी विलंब होगा। कहते हैं कि-
'करत-करत अभ्यास से जडमति होत सुजान।
रसरी आवत-जात से सिल पर पड़त निसान॥'
- ब्रह्माण्ड में हर वस्तु दूसरी किसी भी वस्तु को अपनी और आकर्षित करती है। जब आप मंत्रोचारण या हवन करते हैं तों उसका वातावरण पर अत्यंत सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- मन्त्रों के उच्चारण द्वारा वातावरण में सकारात्मक तरंगे फैलती है और उनका श्रवण करने से मन शांत होता है।
- इसी तरह लगातार जप का अभ्यास करते रहने से आपके चित्त में वह मंत्र इस कदर जम जाता है कि फिर नींद में भी वह चलता रहता है और अंतत: एक दिन वह मंत्र सिद्ध हो जाता है। दरअसल, मन जब मंत्र के अधीन हो जाता है तब वह सिद्ध होने लगता है।
- मंत्र से किसी देवी या देवता को साधा जाता है, मंत्र से किसी भूत या पिशाच को भी साधा जाता है और मंत्र से किसी यक्षिणी और यक्ष को भी साधा जाता है। 'मंत्र साधना' भौतिक बाधाओं का आध्यात्मिक उपचार है।
- यदि आपके जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या या बाधा है तो उस समस्या को मंत्र जप के माध्यम से हल कर सकते हैं।
- मंत्र जापक को व्यक्तिगत जीवन में सफलता तथा सामाजिक जीवन में सम्मान मिलता है।
- मंत्र के द्वारा हम खुद के मन या मस्तिष्क को बुरे विचारों से दूर रखकर उसे नए और अच्छे विचारों में बदल सकते हैं।
- मंत्र के जापक से सौम्यता आती-जाती है और उसका आत्मिक बल बढ़ता जाता है। मंत्र जप से चित्त पावन होने लगता है। रक्त के कण पवित्र होने लगते हैं। सुख-समृद्धि और सफलता की प्राप्ति में मदद मिलने लगती है।
मंत्र जप मानव के भीतर की सोई हुई चेतना को जगाकर उसकी महानता को प्रकट कर देता है। इसलिए रोज किसी एक मंत्र का हो सके, उतना अधिक से अधिक जाप करने की अच्छी आदत अवश्य विकसित करें।
मंत्र का महत्व
मंत्र के विषय में वैदिक मत है कि मंत्र धर्म शास्त्रो एवं ग्रंथो से ली जानेवाली देवी देवताओ कि ऐसी प्रार्थना अथवा ऐसे शब्द का स्वरुप है जिसके जप या मनन से देवी देवताओ को प्रसन्न करके अपनी सभी कामना पूर्ण की जा सकती है। मंत्रो से न केवल हमारे जीवन की परेशानियाँ खत्म होती है बल्कि हमारे मन को शांति भी प्रदान होती है।
- श्री भगवत गीता में साक्षात् भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि भेट तथा अर्पण में सर्वश्रेष्ठ जाप रूप अर्पण में हुँ।
- इसी प्रकार राम चरित मानस में गोस्वामी तुलसी दास ने मंत्र की महिमा का निम्न वर्णन किया है। कलियुग केवल नाम आधारा, सुमिर सुमिर नर पावहि पारा।
- मंत्र के जानकारो के अनुसार मनुष्य के भाग्य चक्र या कर्मो से उत्पन्न होने वाले दुखो का निवारण मंत्रो द्वारा किया जा सकता है।
- सांसारिक भोगो कि प्राप्ति एवं आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति हेतु मंत्र जप बहुत ही प्रभावशाली माना गया है।
मंत्र जाप के नियम
मंत्र जाप के नियम कुछ निम्नलिखित है:
- मंत्र जाप का सबसे पहला नियम है मंत्र का सही उच्चारण करना।
- जिस मंत्र का जाप करना है उसका अर्घ्य पहले से लें।
- मंत्र सिद्धि को गुप्त रखना चाहिए। प्रतिदिन के जप से ही सिद्धि होती है।
- कम से कम 108 मनकों का जाप अवश्य करना चाहिए।
- साधना काल में वाणी का असंतुलन, कटु-भाषण, प्रलाप, मिथ्या वचन आदि का त्याग करें।
- मौन रहने की कोशिश करें।
- निरंतर मंत्र जप अथवा इष्ट देवता का स्मरण-चिंतन करना जरूरी होता है।
- जिसकी साधना की जा रही हो, उसके प्रति मन में पूर्ण आस्था रखें।
- मंत्र-साधना के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति धारण करें।
- साधना-स्थल के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ साधना का स्थान, सामाजिक और पारिवारिक संपर्क से अलग होना जरूरी है।
- उपवास में दूध-फल आदि का सात्विक भोजन लिया जाए।
- श्रृंगार-प्रसाधन और कर्म व विलासिता का त्याग अतिआवश्यक है।
- साधना काल में भूमि शयन ही करना चाहिए
किसी विशिष्ट सिद्धि के लिए सूर्य अथवा चंद्रग्रहण के समय किसी भी नदी में खड़े होकर जाप करना चाहिए। इस तरह किया गय जाप अतिशीघ्र फल देता है। जाप का दक्षांश हवन करना चाहिए और ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराना चाहिए।
मंत्रजप के प्रकार
शास्त्रों के अनुसार मंत्र तीन प्रकार के होते हैं:
- वैदिक मंत्र
- तांत्रिक मंत्र
- शाबर मंत्र।
मंत्रजप में चौदह प्रकार के भेद
- वाचिक जप- इस जप में ऊंचे स्वर में स्पष्ट शब्दों में मंत्र का उच्चारण किया जाता है।
- मानस जप- इस जप का अर्थ मन ही मन जप करना होता है।
- उपांशु जप- इस जप में साधक की जीभ या होंठ हिलते हुए दिखाई देते हैं लेकिन आवाज़ सुनाई नहीं देती है।
- नित्य जप- जो जप नियमित रूप से नित्यप्रति किया जाता हो उसे नित्यजप कहते हैं।
- नैमित्तिक जप- नैमित्तिक जप उसे कहा जाता जो किसी के निमित्त किया जाता हो।
- काम्य जप- जब मंत्र जप का अनुष्ठान किसी कामना की सिद्धि के लिए किया जाता है उसे काम्य जप कहा जाता है।
- निशिद्ध जप- किसी को हानि पहुचाने की दृष्टि से किया गया जप तथा किसी के उपकार के लिए किया जाने वाला जप तथा अशुद्ध उच्चारण पूर्वक किया गया जप निशिद्ध जप है। जप एक लय में नहीं अधिक तीव्रता, अधिक मन्दता से किया गया जप भी निशिद्ध है। और ऐसे जप निश्फल होते है।
- प्रायश्चित जप- जाने अनजाने में किसी से कोर्इ दोश या अपराध हो जाने पर प्रायश्चित कर्म किया जाता है। उन दोशों से चित में जो संस्कार पड गये होते है, उनसे मुक्त होने उन पाप कर्मो से मुक्त होने हेतु जो मंत्र जप आदि किये जाते है, प्रायश्चित जप कहलाते है।
- अचल जप- इस प्रकार का मंत्रजप आसनबद्ध होकर स्थिरतापूर्वक किया जाता है, अचल जप में अंग प्रत्यंग न हिलते हो और भीतर मंत्रजप चलता है, इस प्रकार का जप अचल जप है।
- चल जप- इस प्रकार के मंत्र जप में स्थिरता नही होती उठतें, बैठते, खाते, सोते सभी समय यह जप किया जा सकता है। इस प्रकार के जप में जीभ व होंठ हिलते है और यदि हाथ में माला है वह भी हिलती हैं। इस प्रकार चल अवस्था में होते रहने से ही यह चल जप है।
- अखण्ड जप- ऐसा जप जिसमें देश काल का पवित्र अपवित्र का भी विचार नहीं होता और मंत्र जप बिना खण्डित हुए लगातार चलते रहे, इस प्रकार का जप खण्डित जप कहा जाता है।
- अजपा जप- बिना प्रयास कियें श्वास-प्रश्वास के साथ चलते रहने वाले जप को अजपा जप कहा जाता है। जैसे श्वास-प्रश्वास में विराम नहीं होता है, उसी तरह यह जप भी बिना विराम चलता रहता है। जब तक श्वास देह में है।
- भ्रमर जप- इस प्रकार का मंत्र जप भौरे के गुंजन के समान गुंजन करते हुए किया जाता है। अर्थात् अपने र्इष्ट मंत्र का जाप गुनगुनातें हुए करना भ्रमर जप है।
- प्रदक्षिणा जप- किसी भी देवस्थान, मन्दिर या देवता की प्रदक्षिणा करते समय मंत्र जप किया जाता है। इस प्रकार का जप प्रदक्षिणा जप कहा जाता है।
माला का जपना
वैदिक काल में ईश्वर को प्रसन्न करने और अपनी मनोकामना की पूर्ति हेतु मंत्र का जाप करने का विधान है। शास्त्रों के अनुसार निश्चित संख्या में मंत्र का जाप करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। मंत्र के जाप में गणना आवश्यक है।
- जप गणना के लिए माला का प्रयोग किया जाता है।
- जिस देवी-देवता को प्रसन्न करने के लिए आप मंत्र का जाप कर रहे हैं उनसे संबंधित माला से जाप करने से आपको दोगुना फल मिलता है।
माला जपने का नियम
मंत्र का जाप करते समय माला फेरी जाती है जिससे जप संख्या का पता लगता है।
- प्रत्येक माला में 108 मनके होते हैं। दाहिने हाथ से माला का जाप करना चाहिए।
- ध्यान रहे जप करते समय माला भूमि पर स्पर्श न हो।
धन के आगमन का मंत्र
किसी पात्र में कुंकुम से अष्टदल कमल का निर्माण कर प्रमोदा को स्थापित कर उस पर कमल के पांच पुष्प चढ़ाए। घी का दीपक जला कर इस मंत्र का जाप सात दिन तक करें। सातवे दिन प्रमोदा को जल में प्रवाहित कर दें। धन के आगमन के सरे द्वार अपने आप खुल जायेंगे।
।। ॐ श्री श्री महाधनं देहि ॐ नम: ।।
मनोकामना पूर्ति का मंत्र
कमलगट्टे की माला से इस मंत्र का जाप करते हुए घी के साथ 101 आहुतिया देने से साधक की सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है।
।। ॐ क्ली चामुंडे मनोवांछित कुरु कुरु फट ।।
कार्य सफलता प्राप्ति मंत्र
चन्दन से किसी कागज पर गणपति बनाकर उस पर लक्ष्मीयंत्र रखकर लाल पुष्प चढ़ावें। तेल का दीपक जलाकर इस मंत्र का पांच दिन तक लगातार 45 बार जाप करें। पांचवे दिन यन्त्र को उसी कागज में लाल धागे से बांधकर नदी में प्रवाहित कर दे। इस प्रयोग से साधक की हर कामना पूर्ण होती है।
।। ॐ ह्रीं विचित्रे काम पूरय ॐ ।।
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